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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी


सोने की कंठी

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मना करने पर भी वह जेठानियों के साथ काम करती; और सास को नियम से रोज रामायण सुना देती। रात को अलाव के पास बैठती, जहाँ गाँव की अनेक युवतियाँ, वृद्धाएँ, युवक और प्रौढ़ सभी इकट्ठे होते; फिर बहुत रात तक कभी कहानी होती और कभी पहेलियाँ बुझाई जातीं। वहाँ दिन भर के परिश्रम के बाद सब लोग कुछ घंटे निश्चित होकर बैठते; उस समय कहानी और पहेली के अतिरिक्त किसी को कोई भी चिंता न रहती थी।

सबेरे नदी का नहाना भी कम आनंद देने वाला न रहता। बूढ़ी, युवती, बहू, बेटी सब इकट्ठी होकर नहाने जाती; रास्ते में हँसी-मखौल और तरह-तरह की बातें होतीं; बिंदो भी उनके साथ जाती; नदी में नहाना उसे विशेष प्रिय था और कभी-कभी जब वह बिरहा गाते हुए दूर से आती हुई अपने पति की आवाज सुनती या जब वह देखती कि उसका पति अपनी मस्त आवाज में-
'खुदा गवाह है हम तुमको प्यार करते हैं' गा रहा है, तो उसे ऐसा प्रतीत होता कि जवाहर उसी को लक्ष्य करके कह रहा है। तात्पर्य यह कि बिंदो पूर्ण सुखी थी; अब उसकी कोई और इच्छा न थी।

एक बार बिंदों की माँ बीमार पड़ी। माँ की सेवा करने के लिए बिंदो को लगातार चार-पाँच महीने नैहर में रहना पड़ा। फिर उसकी आँखों के सामने वही रायसाहब की लड़कियाँ और वही गहने-कपड़ों का प्रदर्शन होने लगा। उसकी सोई हुई आभूषणों की आकांक्षा फिर से जाग उठी। वह सोचने लगी, क्या इस जीवन में मेरी अभिलाषा कभी पूरी न होगी? तो फिर ईश्वर ने मुझे इतना रूप ही क्‍यों दिया? किंतु विधि के विधान पर किसका जोर चलता?

रायसाहब निर्मलचन्द चालीस के उस पार पहुंच चुके थे, फिर भी उनमें रसिकता की मात्रा आवश्यकता से अधिक थी। वे प्रायः सिनेमा देखने जाया करते थे; किसी अच्छी कहानी की एक्टिंग के लिए नहीं, केवल सुंदर चेहरों को देखने के लिए। उन्होंने सब तीर्थ भी कर डाले थे; और प्रायः पर्वों पर सब काम छोड़कर भी वे स्नान-घाटों पर पहुंच जाते थे। किसी प्रकार के पुण्य-लाभ की उन्हें इच्छा रहती थी या नहीं, यह तो ईश्वर जाने; किंतु स्नान करती हुई युवतियों के अंग-प्रत्यंग की ताक-झांक की उत्कट इच्छा उनके चेहरे पर कोई भी साफ देख सकता था। वे कश्मीर और नैनीताल भी अक्सर गर्मी की छुट्टियों में जाया करते थे; किंतु वे जलवायु परिवर्तन के लिए जाते थे या और किसी उद्देश्य से यह नहीं कहा जा सकता। वे सुंदर स्त्रियों के पीछे अनायास ही मीलों का चक्कर अवश्य लगा आते थे।

वे बहुत कुरूप थे। इसलिए सुंदरी की बात तो अलग रखिए, कोई कुरूप से कुरूप स्त्री भी उनकी तरफ आंख उठाकर देखने में अपना अपमान समझती थी; इसलिए प्रायः गंदे मजाक करके ही वे अपनी वासना की तृप्ति कर लिया करते थे। इसके अतिरिक्त वे परोपकारी भी थे। उनके घर एक नामी-गिरामी वैद्यराज रहा करते थे, जो रायसाहब के मित्रों और उनके आश्रित निर्धनों का मुफ्त इलाज करते थे। उनका दवाखाना रायसाहब की बैठक से लगा था। मरीज को दवा लेने के लिए रायसाहब की बैठक से होकर ही वैद्यराज के पास जाना पड़ता था। बिन्दो की मां का इलाज भी यही वैद्यराज करते थे। घर में और कोई न होने के कारण बिन्दो को ही मां के लिए दवा लानी पड़ती थी।

एक दिन दोपहर को बिन्दो जब दवा लेने गई तो उसने देखा कि रायसाहबव के पास एक सुनार कई तरह के गहने फैलाए बैठा है। सहसा इस प्रकार गहनों की प्रदर्शनी सामने देखकर इतने दिनों की सोई हुई बिन्दो की गहनों की उत्कंठा फिर से जाग्रत हो उठी। क्षण-भर के लिए वह भूल गई कि वह यहां किसलिए आई है। वह उत्सुकता-पूर्वक उन फैले हुए गहनों के पास बैठ गई, और बड़े चाव से उन्हें उठा-उठाकर देखने लगी। उनमें से तीन लड़ की एक कंठी थी जो बिन्दो को बहुत पसंद आई। उसने उस कंठी को कई बार उठाया और रखा; और अंत में एक ठंडी सांस के साथ वह उसे वहीं रखकर अलग खड़ी हो गई। रायसाहब ने भी वही कंठी पसंद की। बाकी गहने वापिस करके सुनार को दाम देने के लिए दूसरे दिन बुलाकर उन्होंने उसे रवाना कर दिया।

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